हनुमान जयंती: भगवान हनुमान के महत्व का पर्व।
23 अप्रैल हनुमान जयंती: भगवान हनुमान के महत्व का पर्व है हनुमान जयंती भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख त्योहार है, जो हिंदुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व भगवान हनुमान के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और उनके जीवन और कृतियों को याद करने का अवसर प्रदान करता है। हनुमान जी को भक्तों के सबसे प्रिय देवता माना जाता है और उनके भक्ति में विश्वास रखा जाता है कि वे सभी कष्टों और संघर्षों से लड़कर उन्हें पार कर सकते हैं।
हनुमान जी का जन्म किसी भी मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में हुआ था, और उनके पिता का नाम ‘पवन’ था। उनका जन्म केशरी और अंजना के घर में हुआ था। हनुमान जी के बाल्यकाल के कई लीलाएं और महाभारत महकाव्य के अनुसार वीरता के कई उदाहरण हैं।
प्रधानमंत्री मोदी जी नें भी हनुमान जयंती पर बधाई दी।
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उन्होंने कहा हनुमान वो शक्ति और सम्बल है। जो समस्त वन के प्रणियों को जोड़ने का काम करते है।
23 अप्रैल हनुमान जयंती: भगवान हनुमान के महत्व का पर्व हनुमान जी को ‘पवनपुत्र’ और ‘मारुति नंदन’ भी कहा जाता है। उन्हें भगवान राम के भक्त, और एक अत्यंत वीर और उदार आत्मा के रूप में जाना जाता है।
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हनुमान जयंती के अवसर पर, लोग मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। भक्त उन्हें प्रसाद के रूप में मिठाई, फल और पुष्प चढ़ाते हैं। इस दिन को हरियाली व उत्साह के साथ मनाया जाता है।
हनुमान जी की पूजा के बाद, लोग उनके जीवन के बारे में कथाएँ सुनते हैं और उनके बल, वीरता, और निष्ठा का गुणगान करते हैं। उनके भक्ति में विश्वास रखते हुए, लोग अपने जीवन में सफलता और सुख की कामना करते हैं।
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हनुमान जयंती एक धार्मिक और सामाजिक त्योहार है जो हमें वीरता, समर्पण, और भक्ति का संदेश देता है। इस अवसर पर हमें अपने जीवन में भगवान हनुमान के गुणों को अपनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को सफलता और सुख से भर सकें।
प्रधानमंत्री मोदी जी नें भी हनुमान जयंती पर बधाई दी।
आप अपनी जानकरी सुदिध करने के लिए गीता प्रेस के माध्यम से ले सकते हैं।
जीवन के क्षेत्र में कोई विध्न की घड़ी हो, तो आप आप हनुमान चलिसा या बजरंगबाण पढ़ सकते है। ऐसा हिन्दू धर्म ग्रन्थ बताता है। तथा धर्मविद गुरुओं का कहना भी है।
हनुमान चलीसा
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँलोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बलधामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन वरण विराज सुबेसा। कानन कुंडल कुञ्चित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूँज जनेऊ साजे॥
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महाजग वंदन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबेको आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबेको रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज सवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादिमुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
युग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँघि गयें अचरज नाही॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै॥
चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सादा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुरजाई। जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
पवन तनय संकट हरण। मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप सियावर रामचंद्र की जय।