गणेश चतुर्थी 7 सितंबर करें गणेश की पूजा विधि मुहूर्त का रखें ख्याल विघ्नहर्ता की होगी कृपा दृष्टी
गणेश चतुर्थी तिथि का आरंभ
हिन्दू कलेंडर के अनुसार, गणेश चतुर्थी की तिथि का शुरुआत 6 सितंबर, दोपहर 3 बजकर 2 मिनट सेप्रारम्भ होगी। चतुर्थी तिथि का समापन 7 सितंबर को संध्या प्रहर में शाम 5 बजकर 38 मिनट पर हो जायेगी शास्त्रों के विधान के अनुसार, उदया तिथि में विघ्नहर्ता गणेश चतुर्थी का व्रत और गणेशजी की स्थापना का 7 सितंबर को सुंदर संयोग बना है।
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गणेश चतुर्थी 7 सितंबर करें गणेश की स्थापना पूजा विधि मुहूर्त
दस दिवसीय उत्सव भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो बुद्धि, विद्या और समृद्धि आदि के देवता हैं। आज, भक्त गणपति बप्पा की मूर्तियाँ घर लाते हैं और धूमधाम से उत्सव की शुरुआत करते हैं। आज के दिन भगवान गणेश का स्वागत करना चाहिए। तो आपको स्थापना करने का शुभ मुहूर्त पता होना चाहिए। विवरण जानने के लिए आगे पढ़ें। इसलिए शुभ मुहूर्त का रखे ख्याल।
गणेश चतुर्थी 7 सितंबर करें गणेश की स्थापना पूजा विधि मुहूर्त
सबसे पहले एक कलश में जल भरकर ले आएं। जहां भी आपने पूजा के लिए मंडप बनाया है वहां आसन बिछाकर बैठ जाएं। हाथ में जल लेकर सबसे पहले हाथ में जल औरकुश लें, फिर मंत्र उच्चारण करें। ..ओम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:।।
फिर जल को अपने ऊपर और पूजा के लिए रखे सभी सामग्रियों पर इसे छिड़क दें। इसके बाद तीन बार आचमन करें। हाथ में जल लें और ओम केशवाय नम: ओम नाराणाय नम: ओम माधवाय नम: ओम ह्रषीकेशाय नम:। ऐसे बोलते हुए तीन बार हाथ से जल लेकर मुंह से स्पर्श करें फिर हाथ धो लें। इसके बाद जहां गणेशजी की पूजा करनी हो उस स्थान पर कुछ अटूट चावल रखें। इसके ऊपर गणेशजी की प्रतिमा को विराजित करें।
गणेश चतुर्थी की कहानी भगवान गणेश से जुड़ी हुई है, जिन्हें हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेश चतुर्थी का पर्व गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है।
गणेश जी की प्रसिद्ध कहानी गणेश चतुर्थी 7 सितंबर करें गणेश की स्थापना पूजा विधि मुहूर्त
एक बार देवी पार्वती ने स्नान करने से पहले अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया उस बालक का नाम गणेश था और उसे अपने द्वार पर पहरेदारी के लिए खड़ा कर दिया। उन्होंने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे।उसी समय भगवान शिव घर लौटे और अंदर जाने लगे, तो बालक ने उन्हें रोक दिया, फिर गणेश और शिव में भयंकर यूद्ध प्रारंम्भ हो गया। इस पर शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया।
जब पार्वती को इस घटना का पता चला, तो वह अत्यंत दुखी हुईं और भगवान शिव से अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने का आग्रह करने लगी। उसके बाद, शिवजी ने गण को आदेश दिया कि. .. सुबह जिस किसी भी प्राणी का सिर लाकर दें, जिसका मुख उत्तर दिशा की ओर हो। गण ने हाथी के बच्चे का सिर लाकर दिया और शिवजी ने उस सिर को बालक के शरीर पर जोड़ दिया। इस प्रकार गणेशजी फिर से जीवित हो गये।
गणेश चतुर्थी के दिन लोग भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना कर उनकी पूजा करते हैं और दस दिन तक उत्सव मनाते हैं। इस पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन के साथ होता है, जहां लोग गणेश जी की मूर्ति को जल में विसर्जित करते हैं।
भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता का स्थान क्यों दिया जाता है ?
स्वयं भगवान शिव ने दिया था। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कथा जो इस प्रकार है। एक बार सभी देवताओं में यह विवाद उत्पन्न हो गया कि उनमें से सबसे पहले पूजनीय कौन है। इस समस्या का समाधान करने के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास गए। शिवजी ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और कहा कि जो भी देवता सबसे पहले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा कर आएगा, वही सबसे पहले पूजनीय होगा।
गणेश चतुर्थी 7 सितंबर करें गणेश की स्थापना पूजा विधि मुहूर्त और उत्तपति की कहानी।
यह सुनकर सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। लेकिन गणेशजी का वाहन चूहा था, जो बहुत धीमा गति वाला था। इसलिए, गणेशजी ने एक चालाकी भरा उपाय सोचा। उन्होंने अपने माता-पिता, भगवान शिव और देवी पार्वती, की तीन बार परिक्रमा की और कहा कि उनके लिए समस्त संसार उनके माता-पिता के चरणों में है। मैं इन्हीं का परकर्मा कर लेता हूँ, इस प्रकार उन्होंने सांकेतिक रूप से पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर ली।
और जानें: गणेश विसर्जन और अनंत चतुर्दशी की पीछे की कथा।
गणेश चतुर्थी 7 सितंबर करें गणेश की स्थापना पूजा विधि मुहूर्त गणेशजी की इस बुद्धिमानी और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें प्रथम पूज्य का आशीर्वाद दिया। इसके बाद से ही गणेशजी को सभी देवी-देवताओं और कार्यों में सबसे पहले पूजनीय माना जाने लगा। उसी दिन से सर्वप्रतम गणेश जी पूजे जाने लगे। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणपति पूजा के बिना अधूरी मानी जाती है।