बिहार मतदाता सूची विवाद सुनवाईबिहार मतदाता सूची विवाद सुनवाई : याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, SIR प्रक्रिया को देश भर में लागू किया जा सकता है
याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष बिहार में अदालत से एसआईआर प्रक्रिया के “गलत समय पर और जल्दबाजी में” संचालन के लिए चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगने का आग्रह किया है।
बिहार मतदाता सूचि विवाद: न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ चुनावी राज्य बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के पक्ष और विपक्ष में दलीलें को सुनी जा रही है और यह तय किया जा रहा ह, कि क्या भारत के चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए इस अभियान पर फिलहाल रोक लगाने की आवश्यकता है।
मतदाता सूची विवाद SIR प्रक्रिया को देश में लागू किया जा सकेगा।
विपक्षी नेताओं, कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों और वकीलों द्वारा दायर 10 से अधिक याचिकाएँ पीठ के समक्ष पेश की गई हैं, जिसने मामले को 10 जुलाई को तत्काल सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की थी।
याचिकाओं के तर्क के अनुसार एसआईआर की घोषणा करने वाली 24 जून की अधिसूचना पर रोक लगाने वाला सर्वोच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश आवश्यक था क्योंकि समाज के गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों से आने वाले करोड़ों मतदाताओं पर अपना निवास साबित करने के लिए दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का कड़ा दबाव था, अन्यथा उन्हें मताधिकार से वंचित होने का सामना करना पड़ सकता था।
मतदाता सूची विवाद SIR प्रक्रिया को देश में लागू किया जा सकेगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह आधार को स्वीकृत दस्तावेजों की सूची से बाहर करने के चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाएगा।
न्यायमूर्ति बागची ने पूछा कि क्या एसआईआर (SIR) प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए), 1950 की धारा 21(3) के तहत की गई थी।
सरकारी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों का आज हड़ताल
श्री शंकरनारायणन ने सकारात्मक जवाब दिया, लेकिन यह भी बताया कि चुनाव आयोग को “किसी भी समय, कारणों को दर्ज करके” विशेष संशोधन का आदेश देने का अधिकार है, फिर भी उसे धारा 21(1) और संबंधित नियमों के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा।
उन्होंने आगे कहा कि आधार ऐसे संशोधनों के लिए कानून के तहत एक निर्धारित दस्तावेज है, फिर भी एसआईआर प्रक्रिया के दौरान इस पर विचार नहीं किया गया।
मुख्य अपडेट
न्यायमूर्ति धूलिया ने टिप्पणी की कि न्यायालय आधार को स्वीकृत दस्तावेजों की सूची से बाहर करने के चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाएगा।
शंकरनारायणन: बिहार तो बस पहला चरण है; अंततः SIR को पूरे देश में भी लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा 2003 की कट-ऑफ तिथि मनमानी है; SIR लागू करने से नागरिकों के मताधिकार छिनने का खतरा बढ़ सकता है।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार में SIR लागू करने की प्रक्रिया को जल्दबाजी में अंजाम दिया गया।
10 जुलाई, 2025 मध्याह्न
राकेश द्विवेदी ने बताया है कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेज़ों की सूची 11 है, लेकिन यह सूची संपूर्ण नहीं है। इसलिए, चूँकि यह सूची संपूर्ण नहीं है, इसलिए न्याय के हित में यह उचित होगा कि चुनाव आयोग आधार, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर विचार करे।
आदेश में कहा गया है कि इससे अधिकांश याचिकाकर्ता संतुष्ट हो जाएँगे।
श्री द्विवेदी ने आपत्ति जताई। लेकिन न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि इन तीनों दस्तावेज़ों को स्वीकार करने पर विचार करना चुनाव आयोग का काम है।
श्री द्विवेदी ने अदालत में ज़ोर देकर कहा कि चुनाव आयोग केवल आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर ही “विचार” करे। उन्होंने कहा कि यह चुनाव आयोग के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।
पीठ ने मामले की सुनवाई 28 जुलाई के लिए स्थगित कर दी है।
आदेश में कहा गया है कि तीन प्रश्नों पर ध्यान देना होगा: बिहार में नवंबर में चुनाव होने हैं, जो कि बहुत कम है चुनाव आयोग की यह कार्रवाई करने की शक्तियाँ, प्रक्रिया और तरीका के लिए।
हमारा विचार है कि मामले की सुनवाई ज़रूरी है। 28 जुलाई। चुनाव आयोग द्वारा प्रतिवाद एक सप्ताह के भीतर, 21 जुलाई या उससे पहले और प्रत्युत्तर 28 जुलाई से पहले दाखिल किया जाना चाहिए।
न्यायाधीश ने एसआईआर जारी रखने के संकेत दिए
न्यायाधीश धूलिया ने मामले की सुनवाई 28 जुलाई के लिए स्थगित करने का सुझाव दिया। इस बीच, एसआईआर की प्रक्रिया जारी रहेगी। दस्तावेजों की सूची पूरी नहीं है। आधार कार्ड, वोटर कार्ड स्वीकार किए जाएँगे। आप (चुनाव आयोग) अपना काम कर सकते हैं, लेकिन कानून के अनुसार करें। उन्होंने कहा कि कानून आधार की अनुमति देता है।
10 जुलाई, 2025 अपराह्न
चुनाव आयोग का कहना है कि, पिछले एक दशक में 70 लाख लोग बिहार से पलायन कर चुके हैं:
भारत के चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पीछे का कारण बताते हुए कहा “पिछले एक दशक में 70 लाख लोग बिहार से पलायन कर चुके हैं। यह अपने आप में SIR के लिए एक मज़बूत तर्क है।”
हम घर-घर जाकर सर्वेक्षण कर रहे हैं। लगभग एक लाख अधिकारी, स्वयंसेवक और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि इसे कर रहे हैं। यह एक सहभागी कार्य है। यह सब याचिकाओं में दबा दिया गया है।
राजनीतिक दलों को प्रतिदिन कम से कम 50 गणना प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करवाने का अधिकार है। अगर कोई घर पर नहीं है, तो तीन बार आना होगा। श्री द्विवेदी कहते हैं कि गणना प्रपत्र प्राप्त करने और उन्हें चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड करने की ज़िम्मेदारी हमारी है।
अपडेट में लिए बने रहें:
कृपया अपनी प्रतिक्रिया साझा करें: