Nirjala Ekadashi Significance Story Date

चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी महत्व एवं तिथि

निर्जला एकादशी 2025: कठोर ग्रीष्म के महीने में नर्जला एकादशी का व्रत आता है वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों में से सबसे महत्वपूर्ण एकादशी व्रत   है।

निर्जला का अर्थ है बिना पानी के और निर्जला एकादशी का व्रत बिना पानी और किसी भी प्रकार के भोजन के किया जाता है। कठोर उपवास नियमों के कारण निर्जला एकादशी व्रत सभी एकादशी व्रतों में सबसे कठिन है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। निर्जला एकादशी व्रत को करते समय भक्त न केवल भोजन बल्कि पानी से भी परहेज करते हैं। इसे भीमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। 

चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी महत्व एवं तिथि और कथा

Nirjala Ekadashi Significance Story Date
चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी महत्व एवं तिथि और कथा

लाभ – जो श्रद्धालु एक वर्ष में सभी चौबीस एकादशी व्रत करने में असमर्थ हैं, उन्हें एक ही निर्जला एकादशी व्रत करने से सम्पूर्ण व्रत का फल प्राप्त हो जाता है, क्योंकि निर्जला एकादशी व्रत करने से एक वर्ष में चौबीस एकादशियों के सभी लाभ मिलते हैं। भीम के द्वारा किये गए प्रथम उपवास के कारण भीमा एकादशी के नाम से भी जानते है। 

तिथि एवं मुहूर्त: शुक्रवार को निर्जला एकादशी 6 जून 2025,
7 जून को पारण का समय – दोपहर 01:44 बजे से शाम 04:31 बजे तक
 समाप्ति तथा पारण दिवस – सुबह 11:25 बजे
तिथि प्रारंभ एकादशी – 06 जून 2025 से  प्रातः 02:15 बजे तक 
तिथि समाप्त एकादशी – 07 जून, 2025  प्रातः 04:47 बजे तक। 
निर्जला एकादशी पारण
7 जून 2025, शनिवार को वैष्णव निर्जला एकादशी
वैष्णव एकादशी का पारण 8 जून को, समय – सुबह 05:23 बजे से प्रारम्भ, सुबह 07:17 बजे तक
पारण दिवस द्वादशी समाप्ति क्षण – 07:17 पूर्वाह्न

 06 जून 2025 को प्रातः एकादशी तिथि प्रारम्भ -02:15 बजे से
 07 जून 2025 को एकादशी तिथि समाप्त – प्रातः 04:47 बजे  (द्रिक पंचांग के अनुसार)

चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी महत्व एवं तिथि

Nirjala Ekadashi Significance Story Date
चौबीस एकादशियों में श्रेष्ठ निर्जला एकादशी महत्व एवं तिथि और कथा

व्रत कथा: भीमसेन और वेदव्यास जी की कथा महाभारत सेली गई है। 

निर्जला एकादशी की कथा महाभारत के भीमसेन  तथा महर्षि वेदव्यास से जुड़ी हुई है। यह कथा अत्यंत प्रसिद्ध और प्रेरणादायक है।

एक समय की बात है, पांडव वनवास में थे। धर्मराज युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करते थे। लेकिन भीमसेन को अत्यधिक भोजन की इच्छा होती थी, इसलिए वे व्रत नहीं कर पाते थे।

भीमसेन ने एक दिन महर्षि वेदव्यास से पूछा:

“गुरुवर! मेरे लिए यह संभव नहीं कि मैं हर एकादशी को उपवास कर सकूं। क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मुझे भी सभी एकादशियों का फल मिल सके?”

वेदव्यास जी मुस्कुराए और बोले:

“हे भीम! यदि तुम वर्ष में केवल एक दिन – ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को – बिना जल पिए, उपवास करो, तो तुम्हें सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा।”

भीमसेन ने यह सुनकर व्रत करने का संकल्प लिया। उन्होंने उस दिन बिना जल और अन्न के, अत्यंत कठिन तप किया। वे दिन भर भूखे-प्यासे रहे और रात में भी जागरण किया। अंत में द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया।

इस कठोर व्रत को उन्होंने पूरी निष्ठा और भक्ति से निभाया। तभी से इस एकादशी को “भीम एकादशी” या “निर्जला एकादशी” कहा जाता है।

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